प्रत्येक शिशु अनेक प्रतिभाओं का धनी है| गुणों एवं प्रतिभाओं के विकास के लिए आवश्यक है उसे उचित अवसर एवं वातावरण प्रदान करना | शिशु में अनेक गुण विद्यमान होते हैं परंतु योग्य वातावरण मिलने पर ही वे विकसित होते हैं| विद्यालय का वातावरण संस्कारक्षम रहे, इसके लिए शिक्षण के साथ-साथ निम्नांकित क्रियाकलाप भी शिशु मंदिर योजना के अंग है – स्वच्छता सज्जा, खेलकूद, व्यायाम योग, प्रार्थना सभा, सामूहिक भोजन (घर से साथ लेकर आना), सामूहिक योगाभ्यास तथा राष्ट्रगीत के साथ विसर्जन आदि का दैनिक आयोजन किया जाता है|

समय-समय पर होने वाले अन्य क्रियाकलाप :-

  1. विविध उत्सव, पर्व, महापुरुषों की जयन्तियाँ मनाना |
  2. “शिशु भारती” (शिशुओं का संगठन) के माध्यम से छोटी-छोटी व्यवस्थाओं में शिशुओं की सहभागिता एवं दायित्व निर्वहन करने का अभ्यास कराना I
  3. मासिक शिशु – सभा का आयोजन जिसमें सभी शिशु भाग लेते हैं और वे ही इसका संचालन करते हैं I
  4. शिशुओं के जन्म दिवस सामूहिक रूप से मनाना I
  5. विद्या भारती द्वारा आयोजित खेलकूद एवं प्रश्न मंच प्रतियोगिताओं तथा अखिल भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में सहभागिता (कक्षा चतुर्थ/ पंचम) कराना I
  6. शारीरिक एवं रंगमंचीय कार्यक्रमों का आयोजन I
  7. पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त पुस्तकों को पढ़ने के प्रति रूचि सामान्य ज्ञान की जानकारी हेतु पुस्तकालय व वाचनालय की समुचित व्यवस्था I
  8. विज्ञान गणित व कंप्यूटर की प्रभावी प्रयोगशालाएं I

परीक्षा व्यवस्था :-
केवल परीक्षा उत्तीर्ण करना ही उद्देश्य न मानते हुए शिशु के ज्ञानात्मक, बोधात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक पक्ष के मूल्यांकन की व्यवस्था की गयी है, यह कार्य आचार्यों द्वारा सतत होता रहता है | तीन द्विमासिक परीक्षण (Test), अर्द्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षा के आधार पर कक्षोन्नति होती है | पंचम कक्षा में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करने वाले शिशुओं की प्रदेश स्तर पर मेधावी छात्र योग्यता परीक्षा होती है | इनमे प्रथम बीस स्थान प्राप्तकर्ता शिशुओं के लिए पुरुस्कार / छात्रवृत्ति की व्यवस्था है |

स्वास्थ्य परीक्षण :-
सत्र में दो बार जुलाई एवं जनवरी मास में शिशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण योग्य चिकित्सकों द्वारा कराया जाता है, जिसकी आख्या (Report) अभिभावकों को भी भेजी जाती है तथा आवश्यक सुझाव भी दिए जाते हैं |

अभिभावक गोष्ठी एवं सहयोग :-
शिशुओं के विकास में विद्यालय के साथ-साथ अभिभावकों का भी महत्वपूर्ण स्थान है | शिशु के योग्य विकास के लिए विद्यालय एवं परिवार के वातावरण में एकरूपता होना आवश्यक है | इसलिए प्रत्येक मास के द्वितीय शनिवार को कक्षाशः मासिक अभिभावक – गोष्ठी तथा समय समय पर शैक्षिक , सामाजिक व राष्ट्रीय विषयों के प्रति जागरूकता हेतु अभिभावक एवं मातृ – सम्मेलन का आयोजन भी किया जाता है |

पत्रिकाएं :-
आचार्य एवं अभिभावकों तथा शिशुओं के लिए “वार्षिक पत्रिका” का प्रकाशन प्रादेशिक स्तर पर मार्च में होता है | पत्रिका में शिशुओं की रचनाओं का समावेश होता है | विद्यालय स्तर पर प्रति माह ई- पत्रिका भी तैयार की जाती है | समय – समय पर शिशुओं, आचार्यों एवं अभिभावकों के लिए उपयोगी अन्य साहित्य भी प्रकाशित होता रहता है |

अन्य :-

  1. शिशुओं को प्रतिदिन अपने साथ भोजन लाना आवश्यक है। विद्यालय में प्रतिदिन सामूहिक रूप से भोजन करने की व्यवस्था रहती है। स्वस्थ्य की दॄष्टि से प्लास्टिक टिफिन / चम्मच का प्रयोग न करें।
  2. शिशुओं द्वारा कोई भी बहुमूल्य वस्तु (घड़ी या रूपए आदि) विद्यालय में न लाएं।
  3. विविध सूचनाएं एवं कार्यक्रमों की जानकारी पत्र द्वारा समय समय पर भेजी जाती है तदनुसार व्यवस्था में सहयोग करना अभिभावकों से अपेक्षित है।
  4. उपरोक्त नियमों एवं व्यवस्थाओं में परिवर्तन किया जा सकता है। परिवर्तन की यथा समय सूचना दी जाएगी।